महावीर चक्र विजेता नाइक दिगेंद्र कुमार
कारगिल वार के समय जम्मू कश्मीर में तोलोलिंग पहाड़ी की बर्फीली चोटी को मुक्त करवाकर 13 जून 1999 को सुबह चार बजे तिरंगा लहराते हुए भारत को कारगिल वार में प्रथम कामयाबी दिलाई जिसके लिए नाइक दिगेंद्र कुमार को भारत सरकार ने 15 अगस्त, 1999 को महावीर चक्र से नवाजा.
दिगेंद्र कुमार की पारिवारिक दास्तान
बहादुर बालक दिगेन्द्र का जन्म राजस्थान के सीकर जिले की नीम का थाना तहसील के गाँव झालरा में शिवदान सिंह परसवाल के घर श्रीमती राजकौर उर्फ़ घोटली के गर्भ से 3 जुलाई 1969 को हुआ. [27] दिगेंद्र की माँ मोटी ताजी होने के कारण प्यार से घोटली नाम से जानी जाती थी. दरअसल बालक की माँ भी क्रांतिकारी परिवार की पैदाइस थी. राजकौर के पिता बुजन शेरावत सवतंत्रता सेनानी थे. वे हरियाणा प्रान्त में महेंद्रगढ़ जिले की नारनौल तहसील में सिरोही भाली गाँव के रहने वाले थे. बुजन शेरावत सुभाषचंद्र बोस की आजाद हिंद फौज के सिपाही थे जो द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान बसरा-बगदाद की लडाई में वीरगति को प्राप्त हुए.[28]
दिगेंद्र के पिता शिवदान आर्यसमाजी थे. देश की स्वतंत्रता एवं जनजागृति के लिए गाँव-गाँव जाकर प्रचार करते थे. वे भजनोपदेशक भी थे. रहबरे आजम दीनबंधु सर छोटूराम के आव्हान पर वे रेवाडी में जाकर सेना में भरती हो गए. 1948 में पाकिस्तान के साथ युद्ध में पीर बडेसर की पहाड़ी पर साँस की नाली में ताम्बे की गोलियां घुस गई जो जीते जी वापिस नहीं निकलवाई. उनके जबड़े में 11 गोलियां लगी थी. [29]
पिता की प्रेरणा से दिगेंद्र 2 राज राइफल्स में भरती हो गए. सेना में वह हर गतिविधि चाहे दौड़ हो, निशानेबाजी हो, या कोई अन्य कार्य हमेसा प्रथम रहे जिसके कारण उनको बेस्ट कमाण्डो ऑफ दॅ इंडियन आर्मी के रूप में ख्याति मिली. [30]
जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों से संघर्ष
सन 1993 में दिगेंद्र की बटालियन जम्मू-कश्मीर के अशांत इलाके कुपवाडा में तैनात थी. कुपवाडा के उग्रवादियों का एरिया कमांडर मजीद खान जो बहुत खूंखार प्रकृति का था और प्रशासन को नाकों चने चबा रहा था. पहाड़ी इलाका होने और स्थानीय लोगों में पकड़ होने के कारण उग्रवादियों को पकड़ना मुश्किल था. मजीद खान एक दिन कंपनी कमांडर वीरेन्द्र तेवतिया के पास आए और धमकाया कि हमारे खिलाफ कोई कार्यवाही की तो उसके गंभीर दुष्परिणाम होंगे. कर्नल तेवतिया ने सारी बात दिगेंद्र को बताई. दिगेंद्र का खून खोल गया और वह तत्काल मजीद खान के पीछे दोड़ा. वह सीधे पहाड़ी पर चढा़ जबकि मजीद खान पहड़ी के घुमावदार रस्ते से 300 मीटर आगे निकल गया था. दिगेंद्र ने चोटी पर पहुँच कर मजीद खान के हथियार पर गोली चलाई. गोली से उसका पिस्टल दूर जाकर गिरा. दिगेंद्र ने तीन गोलियां चलाकर मजीद खान को ढेर कर दिया. उसे कंधे पर उठाया और मृत शरीर को कर्नल के सम्मुख रखा. कुपवाडा में इस बहादुरी के कार्य के लिए दिगेंद्र कुमार को सेना मैडल दिया गया. [31]
जम्मू-कश्मीर में मुसलमानों की पावन स्थली मस्जिद हजरत बल दरगाह पर आतंकवादियों ने कब्जा करलिया था तथा हथियारों का जखीरा जमा कर लिया था. भारतीय सेना ने धावा बोला. दिगेंद्र कुमार और साथियों ने बड़े समझ से आपरेसन को सफल बनाया. दिगेंद्र ने आतंकियों के कमांडर को मार गिराया व 144 उग्रवादियों के हाथ ऊँचे करवाकर बंधक बना लिया. इस सफलता पर 1994 में दिगेंद्र कुमार को बहादुरी का प्रशंसा पत्र मिला. [32]
१३ मई १९९९ को शाम पांच बजे मेजर विवेक गुप्ता और दिगेंद्र कुमार ने एक मुठभेड़ में दुर्ग्मुल्ला (कुपवाड़ा) के सदगंगा नामक स्थान पर ४ आतंक वादियों को मार गिराया था.[33]
श्रीलंका शान्ति अभियान में दिगेंद्र का पराक्रम
अक्टूबर 1987 में श्रीलंका सरकार लिट्टे उग्रवादियों के समक्ष असहाय महसूस करने लगी तथा भारत से सैनिक सहायता मांगी. उग्रवादियों को खदेड़ने का दायित्व भारतीय सेना को मिला. सेना ने इस अभियान का नाम रखा 'ऑपरेशन पवन' जो पवनसुत हनुमान के पराक्रम का प्रतीक था. टास्क के मुताबिक इस अभियान में दिगेंद्र कुमार सैनिक साथियों के साथ तमिल बहुल एरिया में पेट्रोलिंग कर रहे थे. पॉँच तमिल उग्रवादियों ने दिगेंद्र की पेट्रोलिंग पार्टी के पाँच सैनिकों को फायर कर मौत के घाट उतार दिया और भाग कर एक विधायक के घर में घुस गए. दिगेंद्र ने बाकी साथियों के साथ पीछा किया. और विधायक के घर का घेरा डलवा दिया. लिटे समर्थक विधायक ने बाहर आकर इसका विरोध किया. दिगेंद्र के फौजी कमांडो ने हवाई फायर किया तो अन्दर से दनादन गोलियां बरसने लगी. एक फौजी ने हमले पर उतारू विधायक को गोली मार दी और पांचो उग्रवादियों को ढेर कर दिया. [34] तमिल नेता की हत्या की ख़बर श्रीलंका में आग की तरह फ़ैल गयी. तमिल जनता में आक्रोस का गुब्बार फ़ूट पड़ा. सैन्य अभियान प्रमुख ने स्थिति को भांपते हुए दिगेंद्र सहित आरोपियों को बुलाया. [35]
जनरल कलकट ने क्रोध में दिगेंद्र को फटकारा कि तुम्हें संपर्क कर गोली चलाने के हुक्म के बाद ही गोली चलानी चाहिए थी. हत्या के जुर्म में अब तुम्हारा कोर्ट मार्शल होगा और दश साल की जेल होगी. दिगेंद्र की आत्म रक्षा की कोई बात नही सुनी और उसको कंटीले तारों के एक पिंजडे में दाल दिया. [36]
उधर भारतीय सेना के साथ दुखांत घटना हुई. भारत के ३६ सैनिकों को तमिल उग्रवादियों ने कैद कर लिया. कमान्डोस को कैद किए जाने के स्थान का पता हेलीकॉप्टर की मशीन के जरिये लगा लिया लेकिन उन्हें छुडाना बड़ा मुश्किल काम था. बंधक सैनिकों को टायरों में उल्टा लटका दिया. बीहड़ जंगलों में उग्रवादियों से मुकाबला करना टेढी खीर था. टेन पैरा के 36 सैनिकों को कैद में 72 घंटे हो चुके थे लेकिन बचाव का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था. अफसरों की अनेक बैठकें हुई. जनरल कलकट को मेजर शेरावत ने दिगेंद्र कुमार की योजना सुझाई. जनरल ने दिगेंद्र को बुलाकर उसकी योजना सुनी. दिगेंद्र ने दुशमनों से नजर बचाकर नदी से तैर कर पहुँचने की योजना बताई. जनरल ने बताया कि नदी में 133 के.वि. का विद्युत् बह रहा है. फ़िर भी दुस्साहस कर दिगेंद्र ने पीठ पर 50 किलो एम्युनेशन लिया, अपने हथियार लिए और साथियों के लिए बिस्कुट पैकेट लिए जो 72 घंटे से भूखे थे. हिम्मत कर नदी में गोता लगाया. तेज वारिश शुरू हो गई. आकाश में बिजली कड़कने लगी. अचानक वह विद्युत् तारों से टकराया. सौभाग्य से तेज वर्षा के कारण विद्युत् कट गया था. दिगेंद्र ने झट कटर निकाला और तारों को काट कर आगे पार हो गया. [37]
दिगेंद्र ने वायरलेस से सूबेदार झाबर को पॉइंट पूछा. दिगेंद्र ने अम्मुनिशन और खाने का सामान सूबेदार झाबर को दिया और साथियों को पहुचाने के निर्देश देकर चलता बना. दिगेंद्र से उग्रवादियों के ठिकाने छुपे न थे. वह नदी के किनारे एक पेड़ के पीछे छुप गया और बिजली की चमक में उग्रवादियों के आयुध डिपो दिखाई दिया. दिगेंद्र ने दोनों संतरियों को गोली से उड़ा दिया एवं ग्रेनेड का नाका दांतों से उखाड़ अम्मुनिशन डेम्प पर फेंक दिया. जोर-जोर से सैंकडों धमाके हुए, देखते ही देखते आकाश में धूंआ छा गया. उग्रवादियों में हड़कंप मच गया. दिगेंद्र की हिम्मत देख बाकी कमांडो भी आग बरसाने लगे. थोड़े ही समय में 39 उग्रवादियों को ढेर कर लिया. [38]
जनरल कलकट ने दिगेंद्र को खुस होकर अपनी बाँहों में भर लिया और उसके खिलाफ चलाई गई फाइलों को खारिज कर दिया. उसे बहादुरी का मैडल दिया गया और रोज दाढ़ी बनाने से छूट दी गई. [39]
कारगिल संघर्ष में दिगेंद्र की महती भूमिका
कारगिल युद्ध में सबसे प्रथम और अहम् काम तोलोलिंग की चोटी पर कब्जा करना था. 2 राजपुताना राइफल्स को यह टास्क सौंपा गया. जनरल मलिक ने राजपूताना रायफल्स का गुमरी में दरबार लिया. सभी को तोलोलिंग पहाड़ी को मुक्त कराने का प्लान पूछा. दिगेंद्र खड़ा हुआ और अपना परिचय दिया - मैं दिगेंद्र कुमार उर्फ़ कोबरा बेस्ट कमांडो ऑफ़ इंडियन आर्मी, २ राजपूताना रायफल्स का सिपाही. मेरे पास योजना है जिसके माध्यम से हमारी जीत सुनिश्चित है. [40]
दिगेंद्र ने अपनी योजना बताई कि उसको 100 मीटर का रसियन रस्सा चाहिये जिसका वजन 6 किलो होता है और 10 टन वजन झेल सकता है तथा इसके साथ रसियन कीलें चाहिए जो चट्टानों में आसानी से ठोकी जा सकें. साथ ही हाई पावर के इंजेक्शन चाहिए जो थकान होने पर हिम्मत पैदा कर सकें. इतना सामान मिला तो एक रात में रस्सी बाँध कर आ जाऊंगा. रास्ता विकट और दुर्गम है लेकिन मेरा दूरबीन से अच्छी तरह जांचा परखा हुआ है. [41]
दिगेंद्र उर्फ़ कोबरा 10 जून 1999 की शाम अपने साथियों से गले मिले. विकट पथ को देख कर सभी साथी भयभीत थे कि कोबरा व साथी मिसन में काम आयेंगे. संभवतः वे यह अन्तिम मुलाकात समझ रहे थे. रात का समय था. पहाडियों में बिल्कुल खामोशी थी धमाकों को छोड़कर. चारों तरफ़ बर्फ का साम्राज्य था. धीमे-धीमे कदमों के साथ कोबरा और उसके साथी सैन्य साज सामान के साथ आगे बढे. कीलें ठोकते गए और रस्से को बांधते गए. आधे रास्ते थक गए तो इंजेक्शन ठोक लिया. जब दिगेंद्र के हाथों ने काम करना बंद कर दिया तो दांतों से रस्से को पकड़ दोनों हाथों को खुला छोड़ दिया मानो जिन्दाही ईश्वर के भरोसे आसमान में झूल रही हो. पैरों के नीचे 5 हजार फिट गहरा गढा था. सरकते-सरकते मंजिल की तरफ़ बढ़ने लगे. कई लम्हे ऐसे आए कि मौत बालों को छू कर चली गई और वे बाल-बाल बचे. 14 घंटे की कठोर साधना के बाद मंजिल पर पहुंचे तो बड़ा शकुन मिला. आख़िर सफर रस्सी के सहारे जो था. रस्सा बाँध कर लटकते हुए बटालियन पहुंचे. [42]
12 जून 1999 को दोपहर 11 बजे जनरल मलिक ने दिगेंद्र की पीठ थपथपाई और कहा, "बेटे ! वि. पि. मलिक की ४८ घंटे पूर्व प्रथम कामयाबी के लिए अग्रिम बधाई स्वीकार हो. बेटे ! कारगिल चोटी फतह कर लेगा तो मलिक ख़ुद कल सुबह नाश्ता लेकर आएगा." [43]
प्लान के अनुसार तोलोलिंग पहाड़ी को मुक्त कराने के लिए कमांडो टीम में मेजर विवेक गुप्ता, सूबेदार भंवरलाल भाकर, सूबेदार सुरेन्द्र सिंह राठोर, लांस नाइक जसवीर सिंह, नायक सुरेन्द्र, नायक चमनसिंह, लांसनायक बच्चूसिंह, सी.ऍम.अच्. जशवीरसिंह, हवालदार सुल्तानसिंह नरवारिया एवं नायक दिगेंद्र कुमार थे. [44]
पाकिस्तानी सेना ने तोलोलिंग पहाड़ी की चोटी पर 11 बंकर बना रखे थे. सो दिगेंद्र ने प्रथम बंकर उड़ने की हाँ भरी. 9 सैनिकों ने बाकी के 9 बंकर उड़ाने की सौगंध खाई. 11 वां बंकर दिगेंद्र ने ख़त्म करने का बीड़ा उठाया. गोला बारूद लेकर वे चल पड़े. [45]
कारगिल घटी में बर्फीली हवा चल रही थी. घना अँधेरा था और दिल को दहला देने वाली दुरूह राहें. अचानक गोलों के धमाकों से कलेजा कांप जाता. मौत के सिवाय दूर-दूर तक कुछ दिखाई नहीं देता था. वे पहाड़ी की सीधी चढान पर बंधी रस्सी के सहारे चढ़ने लगे. रेंगते-रेंगते दिगेंद्र अनजाने में वहां तक पहुँच गया जहाँ दुश्मन मशीनगन लगाये बैठा था. दिगेंद्र पत्थरों को पकड़ कर आगे बढ़ रहा था. शरीर में खून जमने लगता तो इंजेक्शन लगा लेते. दिगेंद्र के हाथ में अचानक दुश्मन की मशीनगन की बैरल हाथ लगी जो लगातार गोले फेंकते काफी गर्म हो गई थी. दुश्मन का भान होते ही बैरल को निकाल कर एक ही पल में हथगोला बंकर में सरका दिया जो जोर के धमाके से फटा और अन्दर से आवाज आई - "या अल्लाह या अकबर, काफिर का हमला !!!". [46]
दिगेंद्र का तीर सही निशाने पर लगा. प्रथम बंकर राख हो गया और धूं-धूं कर आग उगलने लगा. पीछे से 250 कमांडो और आर्टिलरी टैंक गोलों की वर्षा कर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहे थे. पाक आर्मी भी बराबर हिस्सेदारी निभा रही थी. कोबरा के साथियों ने जमकर फायरिंग की लेकिन गोलों ने इधर से उधर नहीं होने दिया. आग उगलती तोपों का मुहँ एक मीटर ऊपर करवाया और आगे बढे. दिगेंद्र बुरी तरह जख्मी हो गया था. कोबरा के सीने में तीन गोलियां लगी. एक पैर बुरी तरह जख्मी हो गया. टॉप में 18 गोलियां लगी. कोबरा का पिट्ठू छलनी हो गया. एक पैर से जूता गायब और पैंट लीर-लीर हो गई, कमीज के कुछ टुकड़े शेष थे. दिगेंद्र की अल.ऍम.जी. भी हाथ से छूट गई. शरीर कुछ भी करने से मना कर रहा था पर वीर मर्द ने हिम्मत नहीं हारी. झट से प्राथमिक उपचार कर बहते खून को रोका. [47]
पाक सेना का नेत्रत्व कर रहा मेजर अनवर खान पहाड़ी की चोटी पर बैठा दहाड़ रहा था. अनवर की दहाड़ सुनकर दिगेंद्र की हिम्मत जागी. [48] पीछे देखा तो पता लगा सूबेदार भंवरलाल भाकर, लांस नाइक जसवीर सिंह, नायक सुरेन्द्र, नायक चमनसिंह, अन्तिम साँस ले चुके थे. लांसनायक बच्चनसिंह ने जाते जाते दिगेंद्र को अपनी पिस्टल पकड़ा दी तथा सुल्तानसिंह ने ग्रेनेड दिए और माँ की चुनरी लहराकर विदा हो गए. मेजर विवेक गुप्ता ने बहादुरी से दुश्मन का सामना किया लेकिन जैसे ही पत्थर के सहारे खड़े हुए गोली कनपटी के लगी और धरती लाल हो गई और माँ की गोद में सो गया सदा के लिए. राठोर ने पिस्टल और बारूद दी और वह भी शांत ओ गए. इस तरह दिगेंद्र के सारे साथी वीरगति को प्राप्त कर चुके थे. [49]
दिगेंद्र ने फ़िर हिम्मत की और ग्रेनेड दूसरे बंकर में फेंका और ऐसा करते-करते सारे बंकर नष्ट कर दिए. 11 बंकरों में 18 हथगोले फेंके. मेजर अनवर खान अचानक सामने आ गया. अनवर खान की पिस्टल पर गोली मारी कि वह छूटकर दूर जा पड़ी, बस वो अन्तिम गोली थी. दिगेंद्र ने पिस्टल से दूसरी गोली चलानी चाही पर चली नहीं. उसे बड़ा अफ़सोस हुआ. दिगेंद्र ने डाई लगाई और अनवर खान पर झपट्टा मारा. दोनों लुढ़कते-लुढ़कते काफी दूर चले गए. अनवर खान ने भागने की कोशिस की तो उसकी गर्दन पकड़ ली. दिगेंद्र ने फ़िर छलांग लगाई और खान की पीठ पर लात मारी. वह खदान में गिरकर कराहने लगा. दिगेंद्र जख्मी था पर मेजर अनवर खान के बाल पकड़ कर डायगर सायानायड से गर्दन काटकर भारत माता की जय-जयकार की.
इसे संयोग ही कहें कि अकस्मात ही अमेरिकी उपग्रह कारगिल के तोलोलिंग चोटी के ऊपर से गुजरा कि एक दाढ़ी वाला नौजवान जो सर पर दुपट्टा बांधे हाथ में मेजर अनवर खान की मुंडी लिए भारत माँ के जयकारे लगा रहा था तथा एक हाथ में तिरंगा झंडा लहराने को तत्पर था का उपग्रह ने इस नौजवान का फाइल फोटो कैद कर लिया.
दिगेंद्र पहाड़ी की चोटी पर लड़खडाता चढा और 13 जून 1999 को सुबह चार बजे वहां तिरंगा झंडा गाड दिया. [50]
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